शिष्य


तुम कह रहे हो, कि हम शिष्य हैं, पर शिष्य तो साधक के आगे की स्टेज हैं! शिष्य को समझने के लिए उपनिषद को भी समझना होगा! उपनिषद का तात्पर्य हैं “उप”, “निषद”, पास में आना और नजदीक बैठना! यहाँ पास में आना और नजदीक बैठने का तात्पर्य, गुरु के समीप जाना और गुरु के समीप बैठने की क्रिया से हैं! जो गुरु के समीप बैठता हैं, जो गुरु से कुछ सीखता हैं, जो गुरु का चिंतन करता हैं, उनके ज्ञान मंथन से कुछ मोती प्राप्त करता hain और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान करता हैं, अपने मन की जटिल ग्रंथियों को खोलने का प्रयास करता हैं, ऐसी क्रिया करने वाले को उपनिषद कहते हैं!

उपनिषद और शिष्य में कोई अंतर नहीं दोनों का शब्दार्थ एक हैं! शिष्य का अर्थ भी हैं नजदीक होना और इतना नजदीक होना कि गुरु के हृदय से एकाकार हो सकें…. उसे ही शिष्य कहते हैं!

शिष्य का तात्पर्य किसी देह से नहीं हैं, शिष्य का तात्पर्य खड़े होकर हाथ जोड़ने से नहीं हैं, शिष्य का तात्पर्य कोई दीक्षा लेने से भी नहीं हैं! यह तो एक भाव हैं कि हम दीक्षा लेकर अपने आपको पूर्ण रूप से गुरु चरणों में विसर्जित करके गुरु से एकाकार हो जायें, वहां से तो हमारी शिष्यता प्रारंभ होती हैं!

शिष्य का वास्तविक तात्पर्य हैं गुरु के अनुरूप बनना, और आज्ञा पालन करना! ….. और एकमात्र आज्ञा पालन करना ही शिष्य का परम कर्त्तव्य हैं! यदि हमने तर्क-वितर्क किया तो हम शिष्यता की भावभूमि से परे हट जाते हैं! शिष्य शब्द बना ही हैं आज्ञा पालन से, निरंतर उनकी सेवा करने से! सेवा और आज्ञा पालन ये दो साधन हैं, जिनके माध्यम से शिष्य आगे की ओर अग्रसर होता हुआ पूर्णता प्राप्त कर सकता हैं! जो सेवा नहीं कर सकता, वह समर्पण भी नहीं कर सकता और जहाँ समर्पण नहीं हैं, वहां शिष्यता भी नहीं हैं!

गुरु ने क्या काम सौंपा हैं, ये तो गुरु ही जाने, परन्तु ऐसा काम, चाहे कठिन भी हो, यदि सौंपा हैं तो जरुर इसके पीछे उनका कोई हेतु होगा, जरुर कोई नियमन होगा, तभी ऐसा काम सौंपा हैं – जो ऐसा चिंतन करते हुए बिना आलस्य के, समय पर कार्य को सम्पन्न कर गुरु चरणों में समर्पित कर दे, वही शिष्य हैं!

शिष्य का तात्पर्य हैं “त्याग” – सब कुछ त्याग करने की जिसमें क्षमता होती हैं, वही शिष्य कहला सकता हैं! शिष्य बनना इतना आसान नहीं हैं! यह तो अपने आप को फ़ना कर देने की क्रिया हैं! गुरु और शिष्य के बीच स्वार्थ का कोई सम्बन्ध नहीं होता! यदि व्यक्ति हुलसता हुआ, प्रसन्नता के अतिरेक में गुरु के चरणों में पहुँच जाता हैं, और उनके चरणों में झुक कर मंदिर, मस्जिद, काशी और काबा, हरिद्वार और मथुरा के दर्शन कर लेता हैं, सारे देवी और देवताओं के दर्शन कर लेता हैं, तब वह सही अर्थों में शिष्य हैं!

यह जरुरी नहीं कि गुरु आपको बुलाये ही, परन्तु जिस प्रकार एक बेल पेड़ के चारों ओर लिपटकर एकाकार हो जाती हैं, उसी प्रकार शिष्य भी गुरु के चरणों से लिपट जायें, ऐसी स्थिति बनें तब वह शिष्य हैं!

और जब अहंकार को समाप्त कर सेवा और समर्पण में शिष्य पारंगतता प्राप्त कर लेता हैं, जब वह पूर्ण रूप से सेवामय बन जाता हैं, समर्पंमय बन जाता हैं, तो फिर उसके लिए मंत्र जप जरुरी नहीं रह जाता, क्योंकि सेवा ही मंत्र जप हैं, समर्पण ही अपने आप में पूर्ण साधना हो जाती हैं! और ऐसा होना जीवन का सौभाग्य होता हैं, जिससे देवता भी ईर्ष्या करते हैं!

-सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी.

मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान.

जनवरी 2000, पेज नं : 45.

पावन पर्व


गुरु पूर्णिमा वह पावन पर्व हैं, जब प्रत्येक शिष्य अपने प्राण प्रिय पूज्य गुरुदेव के श्री चरणों में उपस्थित होकर, कृतार्थता व्यक्त करते हुए श्रृद्धा-सुमन अर्पित करता हैं. यही हैं गुरु और शिष्य का पावन सम्बन्ध, जहाँ अन्य सभी सम्बन्ध न्यून और नगण्य हो जाते हैं, क्योंकि शिष्य गुरु का मिलन वैसा ही हैं, जैसे धरती और आकाश का मिलन हो, बूंद और समुद्र का मिलन हो, और इस मिलन के बीच समस्त ब्रह्माण्ड रचा-पचा हैं. यह सम्बन्ध आज का नहीं अपितु युगों-युगों से हैं, और शाश्वत हैं.

यह सम्बन्ध देह का नहीं, अपितु प्राणों का हैं, आत्मा का परमात्मा से मिलन हैं, और कोई शिष्य गुरु से एकाकार होता हैं, तो सारा ब्रह्माण्ड शिष्य के पैरों तले होता हैं, वह शिष्य सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की झलक गुरु में देख कर विस्मय विमुग्ध हो उठता हैं, क्योंकि यह तो स्व का आत्मा से, जीव का ब्रह्म से और चैतन्य का अचैतन्य से मिलन हैं.... और यह मिलन कोई सामान्य मिलन नहीं हैं, अपितु जन्म-जन्मांतर का मिलन हैं!

-सदगुरुदेव निखिलेश्वर

चूक न जाना


और मैं फिर तुम्हें आगाह कर रहा हूँ की जिस प्रकार हर जीवन में तुम अपने जीवन को चूक रहे हों, उस प्रकार से इस जीवन में भी अपने आपको चूक मत जाना, अपने आपको भुलावे में मत डाल देना, कि आज नहीं तो कल कर लेंगे, इस बार नहीं तो अगली बार गुरु पूर्णिमा पर पहुँच जायेंगे, अभी नहीं तो फिर कभी बाद में गुरुदेव से मिल लेंगे.

पर मैं कहता हूँ कि यह तुम्हारा स्वप्न हैं, यह नींद में सुप्त बनाये रखने की प्रक्रिया हैं, यह फिर तुम्हें भुलावा देने की क्रिया हैं और इस बार यदि तुम इस छलावे में आ गए, तो निश्चित हो फिर एक बार अपने जीवन को चूक जाओगे, फिर एक बार तुम्हारा जीवन सामान्य-सा जीवन बन कर रह जायेगा. फिर एक बार तुम्हारा जीवन एक घटिया गृहस्थ का, एक घटिया व्यापारी का या एक मामूली नौकरी पेशे का जीवन बन कर रह जायेगा. फिर समय को पकड़ने और इसको जी लेने के प्रयोग कम हैं, इसकी अपेक्षा चूक जाने के अवसर ज्यादा हैं, नींद में गाफिल हो जाने के मौके ज्यादा हैं, यह तो तुम्हारे हाथ में हैं कि इस जीवन को घटिया जीवन के रूप में व्यतीत कर देना हैं या जीवन को पूर्णता के साथ प्राप्त कर लेना हैं और इसके लिए गुरु पूर्णिमा का शानदार संयोग हैं!

कई-कई जन्मों के बाद ऐसा अवसर आया हैं कि तुम्हारे जीवन में एक चेतना पुरुष उपस्थित हैं. कई हजार वर्षों के बाद ऐसा अवसर पृथ्वी पर उतरा हैं कि स्वयं बुद्धत्व तुम्हें आवाज दे रहा हैं : अपने अंदर आत्मसात करने के लिए, कई युगों के बाद फिर अवसर आया हैं कि तुम अपने जीवन को सही अर्थों में ऐतिहासिक बना सको.

-सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी.

काहे का टेंशन यार ,,,ज्यादा से ज्यादा क्या होगा आर या पार!!!!!!!!

समय की बात करें तो काफी भीड़ हैं कोग्नी की आफिस मैं पंजीकरण को लेके ! समय ११ बज चुके हैं और वक़्त ख़त्म होने वाला तो यह कविता मैं engइनीरिंग के को लेके ही पेश करना चाहूँगा और वोह प्रकार हैं

काहे का टेंशन यार ,
ज्यादा से ज्यादा क्या होगा
आर या पार
अरे यह तो हैं इंजीनियरिंग के गुण,
जिनसे सबको होना हैं अवगुण ,
क्योंकि यही तो जीवन को कर देते हैं भुन !!!

हां, यह जीवन को कर देते हैं भुन,
क्योंकि छात्र हो जाते हैं कूल
सेमेस्टर को भूल जाते हैं फूल
और बेक को बचाना हैं इनका उसूल ,
क्योंकि यही तो इनका नारा हैं
काहे का टेंशन यार ,
ज्यादा से ज्यादा क्या होगा
आर या paarकाहे का टेंशन यार ,
ज्यादा से ज्यादा क्या होगा
आर या पार
अरे, क्या हुआ
कल परीक्षा हैं
थोड़ी न यह दुनिया की अंतिम इच्छा हैं
अरे बार बार यह आयेंगे
हमें यह तर्सायेंगे
और हम इन्हें नम्बरों से भंगायेंगे
इसलिए तो बोलता हूँ और आप भी बोलो
काहे का टेंशन यार ,
ज्यादा से ज्यादा क्या होगा
आर या पार

मशहुर हो जाना हैं तो रिअलिटी शो को अपनाना हैं !!!!!!



Vote for me now! Blogomania 2010 sponsored by Odyssey360 | The 24 hour online book store with 5 milion books to choose from.


इस शीर्षक को मैं शुरू से लेकर अंत तक एक कविता का रूप देना चाहूँगा जो की वाकीई में अपने आप में अद्वित्यहैं ! और वोह शुरू होती हैं इस प्रकार से

हां भाई,,,, क्या आपको मशहुर होना हैं,
बड़े लोगों से जान पहचान करवाना हैं ,
अपने को उनके बीचों में लाना हैं |
तब तो सिर्फ एक ही बहाना हैं ,
की रिअलिटी शो को अपनाना हैं |

अच्छा ,हर दिन सुर्ख़ियों में आना हैं ,
कोई बात नहीं , पेपर में हर दिन नाम छपवाना हैं ,
सभी के नजरों में आना हैं ,
तब तो इसका एक ही इलाज़ करवाना हैं,
और वोह हैं रिअलिटी शो को अपनाना हैं |

ठीक हैं भाइयों ,तो अब इस तरह नाम कमाना हैं ,
शादी का स्वयंवर कराके डुबकी लगाना हैं,
या घर परिवार का नाटक कराके एक दुसरे को बाहर निकालना हैं ,
सोच लो ,क्योंकि यह रिअलिटी शो का जमाना हैं ,
इज्जत का कबाड़ा निकल जाना हैं |

अब यदि सोच ही लिया हैं ,की रिअलिटी सो में जाना हैं,
भरपूर नाम कमाना हैं ,
राखी सावंत या राहुल महाजन की तरह बनना हैं ,
तो यारों में तो एक ही बात कहता हूँ
चार दिन की चांदनी ,फिर अँधेरी रात ,
पल में सूरज कब डूब जायेगा ,फिर छाएगी घनेरी अँधेरी रात !!!!!!!!!!!!!

KARO YA MARO!!!!!!!!!!!!



Vote for me now! Blogomania 2010 sponsored by Odyssey360 | The 24 hour online book store with 5 milion books to choose from.

Before starting this topic, I would like to raise a question in front of you and also I wanna that you should prompt the answer frankly? Ok, By the way, the question is how many of you wanna to become a Rich Man or woman. Most probably the answer would comprise of 90-95%. But just on the other hand if I am going to ask you that how many of you wanna to slog for that . so, what should be the answer could you guess? Ya, answer is going to Lie b/w 20-30%. Above all, here comes the meaning of the caption "get rich or die trying" and this is Basically suited for those fellows who really wanna to fetch some great position in their life along with a heavy bags of capital.
Since jab ish topic pe discussion start ho chuki hain to I just wanna to flash a short abstract or you may say that a short write up which is going to certainly Boost you from inside.
"Maine Bahut saare story padi hain jisme aksar yeh Baatain huan karti thi ki, , kis prakar se usne hardwork, karke safalta ko paaya or yahi, nahi, rather she/he has become the richest man and for this i would like to flash a very good example and that is Ambani. The man who used to work in a petrol pump, The man who is not having a vary great property.
But then also because of his sheer hardwork he has achieved his aim of becoming the riches t man of India.
A great Reason for it? it is because he is having a junoon in his eyes. he has developed his passion in the field of getting Rich. just a single focussed concentration like Arjun and finally the result is that he has hit the target. To yeh thi Dhirubahi ki pehli example jo flash karti hai that either workhard for attaining something without bothering about the consequences ."Jo hoga dekha jayega, apna kaam karne ka"
On the contrary, if you think that a people could become rich only by just earning wealth than you are totally wrong. Yahan pe to saaf tareeqe se likha hain "Get Rich or die trying."
Which means that get rich but the field depends upon either its non-violence or study but try to enrich yourself in that field or just kill yourself.
The greatest example is Mahatama Gandhi who is Rich in non-violence, honesty and by his richness only, we have got freedom so this is called the Real Richness or otherwise just leave the game and thats what he has done. He has fought till the end.
Another Milestone example is Abdul Kalaam who has always tried to enrich or Make himself rich in study and the result you all know "The Missile Man of India" and now also he is engaged himself in this act and that's what is the real richness.

BADA HUA TO KIYA HUA





Vote for me now!
Blogomania 2010 sponsored by Odyssey360 | The 24 hour online book store with 5 milion books to choose from.

Does size really matter? Dont' think so....
Good Morning to all. It is sharp 10:19 am, Date once again 21st of March and above all the countdown of cognizance is going to arrive phir se Nikal pada hoon, Blog ki karwaa main jahaa sirf aur sirf words hote hain jinhe sentence ka Roop dena hota hain. Aur Ish baar to kuch alag hatke hain.
Really a good topic to discuss and to present my notion for this topic. My first aur pehla hamla pen se hoga because as you all are well aware that pen is mighter than the sword"
Since the size of the pen is smaller than sword but is as much as effective than the sword and can even do that work which a sword can't do.
Yadi aap practically dekho to aaj kal ke environment main media is working a lot. If an editor has published a column about some corrupted politician then it generally used to create a havoc and in this condition, all the swords and pistols of the politicians will also not going to work. Rather, on the other hand, I could strictly say that how a pen with a liquid fluid ink having a height of not more than 5 cm, when just start to inprint the words could easily burn the opponents without any harm.


The second example is a very silly example. But a good one and that is of cigarette. A small one, which when smoked by a candidate used to cause cancer so hey guys? What do you think. It is right Naa? so be aware of it.
Thirdly comes the Brain Matter. Ya! I am talking about IIT and IITians. Don't used to cover too much area But also producing world class engineers and technicians and the greatest example for it is E. Sreedharan, the DMRC chief.
And finally the country Israel , such a small country But with his unity and technology he is having a good clutch over his neighbours.

SOFT ONE AND THE HOT ONE





Vote for me now!
Blogomania 2010 sponsored by Odyssey360 | The 24 hour online book store with 5 milion books to choose from.

"The elephant and the Dragon" The hottest topic in the present scenario which depicts many-many hemispheres but there is a big but that what are all the hemispheres?
And hey people, I am damn sure that while seeing this topic only one thing has clicked in your mind and that is the India and the china ya, thats right but above all there are also many things which are resting on this floor.
By the way, the first notion I would like to present in front of you is that of India and china as you have depicted it and I am also agree with it. India, A country of peace" don't want to harm anyone in anyways and just want to remain calm and trying to do his work sincerely. But on the other hand as you all are well aware that if a person is polite and progressing day by day. Then everyone used to pierce him and thats what happening here. The country "India" who is really very polite in nature, who is progressing constantly at a rapid rate is not liked by his neighbours or you may say China. They want that India should come under their clutches. But thats not possible. Because an elephant is a vagabond. He doesn't used to bother that what others are saying. He used to make himself busy with the work always and he knows that if he is going to come in the full flight than no one can stand in front of him and thats what happening "India is Booming".
Finally for this context, I would like to comment one thing for India who is acting as an elephant that is he is having an extra edge in the field of patience and you all know that" patience is the key to success" so hey Dragon Be Aware".



On the contrary, the second hemisphere I would like to tell about a good soul of a human being and a Bad soul of a human being. You know that a human mind always comes in Dilemma if he is going for any work. Do you know why it happens? It happen because of a good soul always tries to push towards the right things and a bad soul always try to push towards the bad things. But in most of the cases, especially in the Kalyug arena, Bad souls used to win. So we should always try to follow the path of elephant Rather than following the path of Dragon.
Finally the Last hemisphere, the one of the most visualised hemisphere, could be easily seen in the Naxal areas where the Naxal who are acting like Dragons are always trying to produce some harm to the people to the Nation and especially to the police. But rather on the other hand, the elephant, who is acting as the police has just kept his gundown because of politics matter and they are just loosing their lives. But when this elephant, the police is going to become out of control then the day is not for when the naxals or militants or so called 'Dragons' are going to loose their lives. so, dragon once again be aware.

WANDERLUST WITH FULL OF LUST||||||||||



Vote for me now! Blogomania 2010 sponsored by Odyssey360 | The 24 hour online book store with 5 milion books to choose from.

Really a great topic it is, through which I could share some of my experiences which I have encountered during my school days, presently in everyday Life and above all a future desire. Ya, friend as I have mentioned just few sentences back that I was having a great experience of wanderlust during my school days and focusing to this topic. I would like to present down that scenario which will refresh your mind, Here, goes the way.
Wow, it was a great day when the faculty has announced that this chron we have planned to go to wagah border for a excursion tour. Really at that time, I was just Blasted from inside with a fire of happiness and finally, I have given my Name for it. Above all, after two days, the final list has been displayed of pan students who are going. The day has been fixed and I have packed My bags with clothes and deo axed. Travelling through train we have reached Amritsar and from that place, we have hired a bus to wagah Border. Hey, men what a mind-boggling scene it was. Thick and big bushes around the road. Totally silent with full-fledged security. Thornings and high fencing with electric wires have been done . finally, The main place, the Border of India-Pak has arrived. It was really a great moment, The soldiers are superb in height with well dressed attires and we pan are really feeling lucky that we have arrived at the Right Chron because in the evening time flag used to come down and for this an eye catching parade used to happen in which both the gate that is India & Pak are opened and the soldiers used to shake their hands. I can't forget that scene.
So, finally that's from the wagah Border Line. Regarding the wanderlust of meditation, I would just like to say that try to close your eyes, focuss your concentration and see what will happen. The mind will just become vagabond and will travel here and there which will flash some good scenarios also. I used to experience it everyday
and finally the desirous wanderlust is "IIT" and its going to be fulfilled during a visit to cognizance.

हे राज्यों की आन || तुम्ही हो भारत की शान ||




Vote for me now!
Blogomania 2010 sponsored by Odyssey360 | The 24 hour online book store with 5 milion books to choose from.

चूँकि बात अब राज्य को लेकर उठ चुकी हैं तो इश संधर्व पर एक कविता पेश करना चाहूँगा ,| यदि हकीकत को देखा जाए मैं भारत के राज्य को लेकर ही कविता पेश करना चाहूँगा जिसमे हर राज्य एक दुसरे के बारे मैं अपना अपना विचार व्यक्त करते हैं , तो ठीक हैं ,सुरु किया जाए ||

सबसे पहले बिहार की जनता पे हुई हैं वार ,
मराठियों ने उठाइए हैं तलवार ,
राज्य को लेके उठा हैं खिलवाड़
क्योंकि इन्हें हैं सिर्फ अपने राज्यों से प्यार
बाकी सब राज्य के व्यक्ति हैं बेकार , सिर्फ बेकार ||

परीक्षा देने देना हैं , नौकरी करने देना हैं ,
लात घूसों से मारकर भगा देना हैं |
सिर्फ एक बात हमेसा की तरह बोल देना हैं ,
मैं हूँ महान ,मेरा राज्य मैं कोई नहीं मेहमान
क्योंकि इसका हकदार सिर्फ हैं
महाराष्ट्र की आन ,
जो हैं की खान
की बिहार की जान |||

यह तो सुना हमने मराठियों की बिहारियों पर वार ,
जिसके जवाब में बिहारियों ने भी उठाई तलवार
और कर दिया मुंबई के बस में चढ़ के पलटवार
मगर अंजाम हुआ खुद की दुनिया से खिलवाड़
और चला गया माँ बाप का लाड प्यार ||

अरे भाइयों यह तो कुछ भी नहीं हैं ,
अब तो राज्य भी बस नाम के ही हैं ,
क्योंकि अब पूर्व, पश्चिम ,उत्तर ,दक्षिण का ज़माना हैं ,
इसी से व्यक्ति को पहचाना लेना हैं ,
तभी तो व्यक्ति का सम्मान होना हैं ,
नहीं तो पीटकर भगा देना हैं ||||

यदि दक्षिण का हैं तो
बढ़िया हैं ,
यदि पूर्व का हैं तो घटिया हैं ,
यदि पश्चिम का हैं
तो अच्छा हैं
और यदि उत्तर का हैं तो सच्चा हैं ||
क्योंकि यही हैं आज के भारत के राज्यों की गान ,
कहते हैं अपने को महान ||

कुछ ही दिन की पहले की हैं बवाल ,
राज्य के अन्दर के हिस्से को लेके उठा हैं सवाल
कहना था तेलंगाना को अलग कराना हैं , जो की आंध्र प्रदेश के अन्दर आना हैं |
आग लगायी ,तोड़ फोड़ किया ,अनसन पर बैठ जाना हैं ,
क्योंकि सभी वाकिफ थे सच्चआई से की तेलंगाना
को अलग हो जाना हैं |
नेताओं का बोलबाल होना हैं,
और घुश्खोरों का समय आना हैं ,
इसलिए तो राज्यों को लेके होती हैं मार ,
क्योंकि यह हैं सिर्फ नेताओं की चाल ,
और भारत की जनता की बिगड़ी हैं हाल ||

मैं तो बस इतना कहत हूँ ,
हिन्दू,मुस्लिम ,सिख ,इशाई
हम सब हैं भाई भाई ,
राज्यों को लेकर कुछ नही हैं लुभाई
अपने को सुधार लेना ही हैं सब कुछ की भरपाई |||

सिर्फ माँ का प्यार और ईश्वर का दुलार |||||





Vote for me now! Blogomania 2010 sponsored by Odyssey360 | The 24 hour online book store with 5 milion books to choose from.


बहुत गर्व महसूस करता हूँ,
जब याद करता हूँ माँ के प्यार को
ईश्वर के लाड दुलार को
जिसने मेरे हर एक दोषों को माफ़ किया हैं,
हर एक खुशियों को झोलियों से भरा हैं ,
ऐसे माँ और ईश्वर को करता हूँ नमन
जो बिना स्वार्थ के करते हैं सबका मनन ,सबका मनन |||

याद रहेंगे वोह पल ,
जब माँ ने मुझे जन्म दिया था |
गर्भ में कितना दर्द सहन किया था ,
पैदा हुआ ,छोटा था ,कुछ भी नहीं जनता था ,
बस माँ के सहारे सब कुछ जाता था ,
और खुशियों को समेट लेता था ||

घर की आमदनी थी बहुत कम ,
मगर माँ ने कभी नहीं किया गम
बल्कि मेरी खुशियों की झोली को भर देती हरदम ,
यह प्यार नहीं तो क्या हैं , बस यही तो माँ का संस्कार हैं ||

अब छोटे से बड़ा हो जाना था ,
माँ ने मुझे अच्छे संस्कार से सींचा था ,
पड़ना लिखना सिखाया था ,
बड़ा आदमी बन्ने को बताया था
क्योंकि माँ का यह निः स्वार्थ सपना था ,
ताकि भारत के एक सपूत को अच्छा बनाना था |||

सबसे बड़ी बात तो यह हैं ,
की बच्चा कितना भी क्यों सरारती हो ,
मगर माँ उसे कभी दिल से डाटती हो|
अरे यही तो हे हैं प्यार ,
जिसे पाने के लिए दुनिया हैं बेकरार
क्योंकि यही माँ का प्यार
ईश्वर की दुलार
जो कराती हैं सारे दुखों से पार |||