पावन पर्व


गुरु पूर्णिमा वह पावन पर्व हैं, जब प्रत्येक शिष्य अपने प्राण प्रिय पूज्य गुरुदेव के श्री चरणों में उपस्थित होकर, कृतार्थता व्यक्त करते हुए श्रृद्धा-सुमन अर्पित करता हैं. यही हैं गुरु और शिष्य का पावन सम्बन्ध, जहाँ अन्य सभी सम्बन्ध न्यून और नगण्य हो जाते हैं, क्योंकि शिष्य गुरु का मिलन वैसा ही हैं, जैसे धरती और आकाश का मिलन हो, बूंद और समुद्र का मिलन हो, और इस मिलन के बीच समस्त ब्रह्माण्ड रचा-पचा हैं. यह सम्बन्ध आज का नहीं अपितु युगों-युगों से हैं, और शाश्वत हैं.

यह सम्बन्ध देह का नहीं, अपितु प्राणों का हैं, आत्मा का परमात्मा से मिलन हैं, और कोई शिष्य गुरु से एकाकार होता हैं, तो सारा ब्रह्माण्ड शिष्य के पैरों तले होता हैं, वह शिष्य सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की झलक गुरु में देख कर विस्मय विमुग्ध हो उठता हैं, क्योंकि यह तो स्व का आत्मा से, जीव का ब्रह्म से और चैतन्य का अचैतन्य से मिलन हैं.... और यह मिलन कोई सामान्य मिलन नहीं हैं, अपितु जन्म-जन्मांतर का मिलन हैं!

-सदगुरुदेव निखिलेश्वर

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