चूक न जाना


और मैं फिर तुम्हें आगाह कर रहा हूँ की जिस प्रकार हर जीवन में तुम अपने जीवन को चूक रहे हों, उस प्रकार से इस जीवन में भी अपने आपको चूक मत जाना, अपने आपको भुलावे में मत डाल देना, कि आज नहीं तो कल कर लेंगे, इस बार नहीं तो अगली बार गुरु पूर्णिमा पर पहुँच जायेंगे, अभी नहीं तो फिर कभी बाद में गुरुदेव से मिल लेंगे.

पर मैं कहता हूँ कि यह तुम्हारा स्वप्न हैं, यह नींद में सुप्त बनाये रखने की प्रक्रिया हैं, यह फिर तुम्हें भुलावा देने की क्रिया हैं और इस बार यदि तुम इस छलावे में आ गए, तो निश्चित हो फिर एक बार अपने जीवन को चूक जाओगे, फिर एक बार तुम्हारा जीवन सामान्य-सा जीवन बन कर रह जायेगा. फिर एक बार तुम्हारा जीवन एक घटिया गृहस्थ का, एक घटिया व्यापारी का या एक मामूली नौकरी पेशे का जीवन बन कर रह जायेगा. फिर समय को पकड़ने और इसको जी लेने के प्रयोग कम हैं, इसकी अपेक्षा चूक जाने के अवसर ज्यादा हैं, नींद में गाफिल हो जाने के मौके ज्यादा हैं, यह तो तुम्हारे हाथ में हैं कि इस जीवन को घटिया जीवन के रूप में व्यतीत कर देना हैं या जीवन को पूर्णता के साथ प्राप्त कर लेना हैं और इसके लिए गुरु पूर्णिमा का शानदार संयोग हैं!

कई-कई जन्मों के बाद ऐसा अवसर आया हैं कि तुम्हारे जीवन में एक चेतना पुरुष उपस्थित हैं. कई हजार वर्षों के बाद ऐसा अवसर पृथ्वी पर उतरा हैं कि स्वयं बुद्धत्व तुम्हें आवाज दे रहा हैं : अपने अंदर आत्मसात करने के लिए, कई युगों के बाद फिर अवसर आया हैं कि तुम अपने जीवन को सही अर्थों में ऐतिहासिक बना सको.

-सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी.

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