एक अनोखा मिलन || कर दिया सारे दुखों का दमन|||


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यदि बात करे किस्मत की तो सच में यो अजीबो गरीबो हरक़त करती रहती हैं | कभी हसाती हैं , कभी रुलाती हैं और कभी कभी तो इतना कुछ दे देती हैं की झोली कम पड़ जाती हैं खुशियों को इकठा करने के लिए और मैं आपके समझ उन्ही खुशियों में से एक ख़ुशी को व्यक्त करना चाहूँगा जो की अपने आप में अदितिव्य हैं |

हमेशा की तरह में अपने काम काज में उलझा रहता था | कभी कालेज के काम में तो कभी टेक्नीकल प्रतियोगताओं में | मगर सफलता ने तो ठान रखी थी की कदम को चूमना ही नहीं हैं | और बात यही ख़तम नहीं होती बल्कि दूसरी ओर से शरीर को भी कमज़ोर ओर खोकला किये जा रही थी अनेक बीमारियों के प्रकोप से |

लेकिन यह बात बिलकुल ही सत्य हैं की " हर एक अंधकार के बाद उदय होता हैं |" ओर ठीक वैसा ही हुआ ||

जहाँ तक मुझे याद हैं वोह दिन जब तारीक नवम्बर २००९ की थी की अचानक मेरा मिलन एक पत्रिका से हुआ जिसका नाम "मंत्र तंत्र यन्त्र " से जुड़ा हुआ था ओर उसके प्रेषक " डॉ नारायण दत्त श्रीमाली " थे जो की अपने आप में एक अदित्व्य व्यक्ति थे | मेरा मानो तो यह एक ऐसी पत्रिका हैं जो भारत की ऋषि मुनियों के द्वारा शोध किये हुए अध्यात्मिक खजानों का रश हैं |
सच में भाइयों ,यदि दिल से एक बात बोलू तो किस्मत ने उसी दिन मुझे ख़ुशी दी थी ओर एक नया पन्ना मेरे जीवन में जोड़ दिया | ओर दूसरी तरफ कहा जाये तो उस दिन मैंने किस्मत को मात दी |

पत्रिका पड़ते ही मेरी सीधे नज़र "डॉ नारायण दत्त श्रीमाली " पे गयी ओर उनके द्वारा लिखी हुई एक ओज भासन को पड़ते ही मेरे मन में चिंगारी पैदा हो उठी की मुझे जो चाहिए था वोह मिल गया ओर किसी भी तरह से उनसे मुलाक़ात करनी होगी |

बस क्या था , पता लिखा जहाँ गुरुदेव का आश्रम था , ओर घर आया , सामान बांधा ओर निकल पड़ा |
यकीन नहीं हो रहा था की किस्मत ऐसी पलटी मारी गी |

दिल्ली पहुँच चूका था , राजस्थान का टिकेट लिया ओर रवाना हो गया | सुबह को आनंदमय मौसम के बीच में जोधपुर पहुंचा ओर एक ऑटो पकड़ के आश्रम की ओर निकल पड़ा |

वाकियों भाइयों ऐसा लग रह था जैसा मनो में कभी यहाँ पहले भी चूका हूँ | कुछ आडम्बर , कुछ दिखावा , एक छोटा सा आश्रम जहाँ चारो ओर तेज थी | कुछ समय तक तो में हत्प्रब्ध रहा हैं फिर फटाफट अपने आप को ऊपर से नीचे तक साफ़ किया | क्योंकि आज किस्मत के सितारों से मुलाक़ात होनी थी |आज वोह मेरे गले में हार पहनाने वाली थी | ठीक कुछ ही देर हुआ होगा माताजी आई | बस देखते ही बन रही थी माँ के तेज का चेहरा | ऐसा लगा , मानो मैंने सब कुछ पा लिया हो |
बस क्या माँ के चरणों को नमन किया ओर किस्मत के आशीर्वाद को प्राप्त किया |

देखों यारों मैं मानता हूँ की किस्मत से मुलाक़ात अक्सर हार से होती हैं ओर उसके साथ बैठकर जाम ही पीना पड़ता हैं मगर यदि किस्मत से मुलाक़ात ख़ुशी से होती हैं तो उस दिन ख़ुशी भी शर्मा जाती हैं उसके सामने |

अंत में मैं इस बार दिलो दिल से किस्मत को धन्यवाद देना चाहूँगा इस बेहतर को करवाने के लिए |

यह लिपि मैं "डॉ नारायण दत्त श्रीमाली " को समर्पित करता हूँ जो किस्मत के विधाता हैं ओर मेरे गुरु ||||

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